Devshayani Ekadashi 2023: क्या देवशयनी एकादशी के दिन से वाकई सो जाते हैं भगवान? जानिए देव निद्रा के असल मायने
Devshayani Ekadashi इस साल 29 जून को है. मान्यता है कि इस एकादशी से देवउठनी एकादशी तक भगवान निद्रा में रहते हैं. आइए आपको बताते हैं देव शयनकाल के वैज्ञानिक कारण.
क्या देवशयनी एकादशी के दिन से वाकई सो जाते हैं भगवान? जानिए देव निद्रा के असल मायने
क्या देवशयनी एकादशी के दिन से वाकई सो जाते हैं भगवान? जानिए देव निद्रा के असल मायने
Devshayani Ekadashi इस साल 29 जून को है. इस एकादशी का शास्त्रों में विशेष महत्व है क्योंकि माना जाता है कि इस एकादशी से भगवान नारायण योग निद्रा में चले जाते हैं. भगवान नारायण का शयनकाल चार महीने तक रहता है और देवउठनी एकादशी के दिन वो नींद से जागते हैं. इस बीच सभी तरह के मांगलिक कार्यों पर रोक लगा दी जाती है. लेकिन ऐसे में क्या आपके दिमाग में कभी ये सवाल आया है कि आखिर देवशयनी एकादशी पर क्या सचमुच नारायण सोने चले जाते हैं? आइए आपको बताते हैं इसके बारे में.
समझिए देव शयनकाल के मायने
इस मामले में ज्योतिषाचार्य डॉ. अरविंद मिश्र का कहना है कि ईश्वर उसे कहा जाता है जो चैतन्य रूप से हमेशा जागृत हो. ऐसा ईश्वर इतने लंबे समय के लिए कैसे सो सकता है? वास्तव में ईश्वर के शयनकाल का ये विधान ऋषि मुनियों ने बनाया है, ताकि आम लोगों को आस्था से जोड़कर उनके जीवन को अनुशासित और व्यवस्थित किया जा सके. सही मायने में देवशयनी एकादशी से लेकर देवउठनी एकादशी तक का समय मौसम परिवर्तन का समय है. इस समय में लोगों के स्वास्थ्य को बेहतर बनाए रखने और उनके जीवन को परेशानियों से मुक्त रखने के लिए इसे भगवान के शयनकाल से जोड़कर विशेष नियमों का पालन करने की सलाह दी गई है.
जानिए क्यों बनाए गए हैं खास नियम
दरअसल देवशयनी एकादशी के कुछ दिनों बाद ही सावन शुरू हो जाता है, जिसमें वर्षा पूरा जोर पकड़ती है. वहीं वर्षा ऋतु समाप्त होने के बाद सर्दियों की शुरुआत हो जाती है. बदलते मौसम में लोगों की इम्युनिटी कमजोर हो जाती है. लोगों को सर्दी, जुकाम, खांसी, एलर्जी, वायरल, संक्रमण आदि कई तरह की परेशानियां होने का खतरा रहता है. बारिश के कारण साग-सब्जियों और फलों में बैक्टीरिया और कीड़े पनपने लगते हैं. इसलिए देव शयनकाल में संतुलित और संयमित जीवन जीने की सलाह दी गई है.
नियमों के पीछे का लॉजिक भी जानें
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- चातुर्मास के समय में दही, मूली, बैंगन, गोभी और साग आदि खाने के लिए मना किया जाता है. बारिश के मौसम में दही से कफ विकार शरीर में बढ़ता है, मूली ठंडी तासीर की होने के कारण समस्या बढ़ाती है और बैंगन, गोभी और साग आदि में कीड़े निकलने का डर रहता है. इसलिए इन्हें खाने के लिए मना किया गया है.
- देवशयनकाल में यात्रा करने के लिए मना किया गया है. जब ये नियम बनाए गए थे, तब हर तरफ रास्ते जंगलों से घिरे होते थे. आज की तरह सड़कें वगैरह नहीं थीं. ऐसे में बारिश के मौसम में सांप, बिच्छू, जोंक और अन्य तमाम जीव बाहर निकल आते थे. इनसे किसी तरह का नुकसान न हो इसलिए यात्रा करने के लिए मना किया गया है.
- इस बीच दूध और अन्य डेयरी प्रोडक्टस का सेवन करने से मना किया जाता है क्योंकि बारिश के मौसम में ये चीजें आपके डाइजेशन को खराब करती हैं. इसकी वजह से पेट से जुड़ी तमाम समस्याएं होने का रिस्क बढ़ जाता है. इसलिए हल्का, सुपाच्य और सात्विक भोजन करने की सलाह दी जाती है.
- इस बीच दिमाग को व्यस्त रखने के लिए ईश्वर का नाम जपने, उनकी विशेष पूजा और अनुष्ठान आदि करने की सलाह दी जाती है. ताकि नियम पालन में उसे किसी तरह की कठिनाई न हो. ईश्वर भक्ति मानकर वो पूरी सकारात्मकता के साथ संतुलित और संयमित जीवन जी सके.
- देव शयनकाल में मांगलिक कार्य न करने के लिए इसलिए मना किया जाता है क्योंकि शुभ कार्यों में हर तरह के गरिष्ठ और चिकनाईयुक्त व्यंजन बनते हैं, लोगों का इधर-उधर आवागमन बना रहता है, ऐसे में नियमों का पालन नहीं हो पाता. इसलिए देवउठनी एकादशी के बाद जब ईश्वर नींद से जाग जाते हैं, तब तक सर्दियों का आगमन हो चुका होता है, तब ये शुभ काम फिर से शुरू कर दिए जाते हैं.
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